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जंगलों के महत्व को जान-बूझ कर भुलाने की गलती कर रहा मानव समाज : राष्ट्रपति मुर्मू

Mochan Samachaar Desk by Mochan Samachaar Desk
24/04/2024
in देश
Reading Time: 1 min read
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जंगलों के महत्व को जान-बूझ कर भुलाने की गलती कर रहा मानव समाज : राष्ट्रपति मुर्मू
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नई दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज बुधवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी देहरादून में आयोजित दीक्षांत समारोह में सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि 18वीं और 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति की वजह से लकड़ी और अन्य वन उत्पादों की मांग बढ़ी। इस बढ़ती मांग के कारण ही वनों के उपयोग के लिए नए नियम-कानून अपनाए गए। ऐसे नियम-कानूनों को लागू करने के लिए ही भारतीय वन सेवा की पूर्ववर्ती सेवा शाही वन सेवा का गठन किया गया था।

राष्ट्रपति ने कहा कि उस समय सेवा के लोगों का शासनादेश जनजातीय समाज और वन संपदा की रक्षा करना नहीं अपितु उनका शासनादेश भारत के वन संसाधन का अधिक से अधिक दोहन करके ब्रिटिश राज के उद्देश्यों को बढ़ावा देना और जंगलों पर साम्राज्यवादी नियंत्रण स्थापित करना था।

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि यह दुखदायी तथ्य है कि वर्ष 1875 से 1925 तक की 50 वर्ष की अवधि में 80 हजार से अधिक बाघों, डेढ़ लाख से अधिक तेंदुओं और दो लाख से अधिक भेड़ियों का शिकार लोगों को प्रलोभन देकर कराया गया, जो मानव सभ्यता के पतन की कहानी है।

परंपरा और आधुनिकता विकास रथ के दो पहिए

राष्ट्रपति ने कहा कि परंपरा और आधुनिकता विकास रथ के दो पहिए होते हैं। आज मानव समाज पर्यावरण संबंधी कई समस्याओं का दंश झेल रहा है। इसके प्रमुख कारणों में एक है आधुनिकता, जिसके मूल में है प्रकृति का शोषण। इस प्रक्रिया में पारंपरिक ज्ञान को उपेक्षित किया जाता है। जनजातीय समाज ने प्रकृति के शाश्वत नियमों को अपने जीवन का आधार बनाया है। जनजातीय जीवन शैली मुख्यतः प्रकृति पर आधारित होती है। इस समाज के लोग प्रकृति का संरक्षण भी करते हैं। असंतुलित आधुनिकता के आवेग में कुछ लोगों ने जनजातीय समुदाय और उनके ज्ञान-भंडार को रूढ़िवादी मान लिया है। जलवायु परिवर्तन में जनजातीय समाज की भूमिका नहीं है, लेकिन उन पर इसके दुष्प्रभाव का बोझ कुछ अधिक ही है।

सदियों से जनजातीय समाज द्वारा संचित ज्ञान के महत्व को समझा जाए

उन्होंने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सदियों से जनजातीय समाज द्वारा संचित ज्ञान के महत्व को समझा जाए और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए उसका उपयोग किया जाए। उनकी सामूहिक बुद्धि हमें पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ, नैतिक रूप से वांछनीय और सामाजिक रूप से न्यायसंगत मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद कर सकती है। इसलिए अनेक भ्रामक धारणाओं को अनदेखा करके जनजातीय समाज की संतुलित जीवन शैली के आदर्शों से हमें सीखना होगा। हमें जलवायु न्याय की भावना के साथ आगे बढ़ना होगा। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जनजातीय समाज की भी विकास यात्रा में बराबर की भागीदारी हो।

हम यह भूलते जा रहे हैं कि वन हमारे लिए जीवनदाता हैं

राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय वन अकादमी की पर्यावरण के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पर्यावरण एवं जंगलों की महत्ता के बारे में पिछले सप्ताह उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण बात कही है कि जब जंगलों के महत्व को समझने की बात आती है तो मनुष्य स्वयं को चयनात्मक भूलने की बीमारी में शामिल कर लेता है। यह जंगल की भावना है, जो पृथ्वी को चलाती है। जंगलों के महत्व को जान-बूझ कर भुलाने की गलती मानव समाज कर रहा है। हम यह भूलते जा रहे हैं कि वन हमारे लिए जीवनदाता हैं। यथार्थ यह है कि जंगलों ने ही धरती पर जीवन को बचा रखा है।

हम पृथ्वी के संसाधनों के मालिक नहीं बल्कि ट्रस्टी

उन्होंने कहा कि आज हम एंथ्रोपोसीन युग की बात करते हैं जो मानव केंद्रित विकास का कालखंड है। इस कालखंड में विकास के साथ विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं। संसाधनों के दोहन ने मानवता को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां विकास के मानकों का पुनः मूल्यांकन करना होगा। आज यह समझना बहुत जरूरी है कि हम पृथ्वी के संसाधनों के मालिक नहीं बल्कि ट्रस्टी हैं। हमारी प्राथमिकताएं मानव केंद्रित होने के साथ प्रकृति केंद्रित भी होनी चाहिए। प्रकृति केंद्रित होकर ही हम मानव केंद्रित हो सकेंगे।

जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती विश्व समुदाय के सामने

राष्ट्रपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती विश्व समुदाय के सामने हैं। अभी हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकार का दर्जा दिया है। सर्वविदित है कि पृथ्वी की जैव-विविधता एवं प्राकृतिक सुंदरता का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिसे हमें अतिशीघ्र करना है। वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के जरिए मानव जीवन को संकट से बचाया जा सकता है।

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Tags: Human society is deliberately making the mistake of forgetting the importance of forests: President Murmumochan samachaarpibजंगलों के महत्व को जान-बूझ कर भुलाने की गलती कर रहा मानव समाज : राष्ट्रपति मुर्मू
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