कोलकाता : बैंक (bank) की संस्थाओं ने देश में 55वें बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस मनाया। जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार स्वतंत्रता के बाद, सरकार को बैंकों और उद्योगपतियों के बीच सांठगांठ और कृषि के लिए बैंक ऋण की कमी की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। नियमित बैंक विफलताएँ हुईं। 1960 और 1969 के बीच 48 अनिवार्य विलय, 20 स्वैच्छिक एकीकरण, भारतीय स्टेट बैंक के साथ 17 विलय, संपत्ति और देनदारियों के 125 हस्तांतरण, सभी में 210 बैंक शामिल थे। बैंकों की संख्या जो 1951 में 567 थी, 1961 में घटकर 295 हो गई और अंततः 1967 में 91 हो गई। ऋण जमा अनुपात कम था, शाखाएँ शहरी और मेट्रो केंद्रों में केंद्रित थीं और गरीब बैंकों तक नहीं पहुँच सकते थे।
इसी अवसर पर AIBOC के पूर्व संपादक और वर्तमान AINBOF के राष्ट्रीय महासचिव संजय दास और वर्तमान संपादक सुभोज्योति चट्टोपाधय ने आयोजित प्रेस मिट में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की देश गठन में अहम भूमिका के बारे में अवगत कराया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का विलय होने से देश की जनता की दर्दनाक स्थिति क्या होगी उसके बारे में भी अवगत कराया। बैंक राष्ट्रीयकरण के संदर्भ में विस्तार पूर्वक उपस्थित सभी के बीच बताया कि छोटे-छोटे किसान, मझोले दुकानदार एवं आम लोगों को सरकारी बैंक के द्वारा ऋण सहायता जमा कार्य इत्यादि दी जाती है, जो कि देश के विकास में महत्वपूर्ण भागेदारी रहती है।
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