सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (Somnath Jyotirlinga)
बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। जो गुजरात के सौराष्ट्र में समुद्र किनारे स्थित है। माना जाता है कि सोमनाथ मंदिर के क्षेत्र में चंद्रदेव ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। जिससे प्रसन्न होकर भगवान यहां प्रकट हुए थे। चंद्रदेव का एक नाम सोम है। इस मंदिर का नाम उन्हीं के नाम पर सोमनाथ पड़ा है।
उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग (mahakaleshwar)
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। रोज सुबह महाकालेश्वर मंदिर में भगवान की भस्म आरती की जाती है। यहां पूजा और दर्शन करने से भय दूर होता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga)
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत बना हुआ है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां देवी पार्वती के साथ शिव जी ज्योति रूप में विराजमान हैं। कहते हैं यहां दर्शन करने से ही अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirlinga)
मध्य प्रदेश के इंदौर से करीब 80 किमी दूर नर्मदा नदी के किनारे एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊंचाई से देखने पर ओम का आकार बना दिखता है और इसी वजह से ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Kedarnath Jyotirlinga)
केदारनाथ धाम उत्तराखंड के चार धामों में से एक है। रुद्रप्रयाग जिले में गौरीकुंड से करीब 16 किमी दूरी पर मंदिर स्थित है। मंदिर का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बना है और इसे “स्वयम्भू” माना जाता है। कहा जाता है- महाभारत के समय भोले नाथ ने पांडवों को बेल रूप में दर्शन दिए थे। वर्तमान मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं-9वीं सदी में करवाया था।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga)
बात भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की, जो महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। इन्हें मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि रावण के भाई कुंभकर्ण के पुत्र भीम ने पिता की मृत्यु से कुपित होकर तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और वरदान प्राप्त किया।
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Vishwanath Jyotirlinga)
उत्तरप्रदेश के वाराणसी यानी काशी में स्थित हैं विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग। यहां महादेव के साथ ही देवी पार्वती भी विराजमान हैं। कहते हैं शिवनगरी में देवर्षि नारद के साथ ही अन्य सभी देवी-देवता आते हैं और शिव पूजा करते हैं। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति काशी में मृत्यु होती है, उसे मोक्ष मिलता है।
त्र्यंबकेश्वर धाम (Trimbakeshwar)
महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है त्र्यंबकेश्वर धाम है। ये ब्रह्मगिरि पर्वत पर स्थित है। मान्यतानुसार यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा एक साथ होती है। गौतम ऋषि के तप से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए थे।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (Vaidyanath Jyotirlinga)
वहीं, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का संबंध त्रेतायुग से है। रावण शिव जी का परम भक्त था। वह हिमालय में शिवलिंग बनाकर तप कर रहा था। तपस्या शिव जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए। रावण ने वर में मांगा कि वह ये शिवलिंग लंका में स्थापित करना चाहता है। शिव जी ने ये वरदान तो दे दिया, लेकिन एक शर्त रखी कि रास्ते में तुम ये शिवलिंग जहां रख दोगे, वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण मान गया। रावण शिवलिंग उठाकर लंका ले जा रहा था, तभी रास्ते में उसने गलती से शिवलिंग नीचे रख दिया, इसके बाद शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। देवी- देवताओं ने उनकी पूजा की थी। जिससे प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और सभी की प्रार्थना सुनकर ज्योति रूप में वहीं विराजमान हो गए। प्रसन्न शिव यहां ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirlinga)
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका में स्थित है। शिवपुराण की रुद्र संहिता में शिव जी का एक नाम नागेश दारुकावने है। शिव जी नागों के देवता हैं और नागेश्वर का अर्थ ही नागों के ईश्वर है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (Rameswaram Jyotirlinga)
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित है। त्रेतायुग में रावण का वध करने के बाद श्रीराम लंका से लौट रहा था। उस समय श्रीराम दक्षिण भारत में समुद्र किनारे रुके थे। श्रीराम ने समुद्र तट पर बालू से शिवलिंग बनाया और पूजा की थी। मान्यता है कि बाद में ये शिवलिंग वज्र के समान हो गया ।श्रीराम के बनाए शिवलिंग को ही रामेश्वरम कहा जाता है।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग (Ghushmeshwar Jyotirling)
महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास दौलताबाद क्षेत्र में स्थित हैं घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग। मान्यता है कि संतान की अभिलाषा रखने वाले दंपति यहां से खाली हाथ नहीं जाते। कथा ब्राह्मण दंपति सुधर्मा और सुदेहा से जुड़ी है। संतान प्राप्ति के लिए सुदेहा ने अपनी बहन घुश्मा का विवाह पति से कराया। घुश्मा शिवभक्त थी। उसे पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन बहन ने ईर्ष्या वश उसे मार दिया। घुश्मा ने शिव आराधना की और प्रसन्न होकर भगवान ने प्रकट हुए और जीवित पुत्र लौटा दिया। तभी से वो यहां विराजमान हैं।