नयी दिल्ली : भारत के उपराष्ट्रपति, जगदीप धनखड़ ने आज कहा, “सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है—आगामी दशक की जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने का। यह एक परिवर्तनकारी, गेम-चेंजर कदम होगा। यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा। यह आंखें खोलने वाला कदम होगा और लोगों की आकांक्षाओं को संतोष देगा। यह सरकार का एक व्यापक निर्णय है। पिछली जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। मैंने कई बार अपनी जाति को जानने के लिए उस जनगणना को देखा है, इसलिए मैं इस गणना के महत्व को समझता हूँ।”
उन्होंने आगे कहा, “आपको अपने सेवा जीवन के हर क्षण में अनुभव होगा कि जो चीजें आपने मान ली थीं, वे कितनी नाजुक थीं। यह एक मृगतृष्णा जैसी होती है, क्योंकि आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते।”
धनखड़ ने दोहराया कि भारत का विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प केवल आकांक्षा नहीं, बल्कि साक्ष्य-आधारित योजना पर आधारित है। उन्होंने कहा, “हम एक ‘विकसित भारत’ की ओर बढ़ रहे हैं—यह हमारा सपना नहीं, बल्कि हमारा उद्देश्य, परिभाषित लक्ष्य है। भारत अब संभावनाओं वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि एक उभरती हुई शक्ति है, जिसकी प्रगति अब रुकने वाली नहीं है। यह प्रगति आंकड़ों के आधार पर साक्ष्य-आधारित मील के पत्थरों से चिन्हित है। हमें ऐसा राष्ट्र बनाना है जो अनुभवजन्य रूप से सोचता हो और ठोस प्रमाणों के आधार पर आगे बढ़े।”
उपराष्ट्रपति ने कहा, “संख्याएं शुष्क अमूर्त नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सामूहिक आकांक्षाओं की गर्मजोशी से भरी गवाही हैं। भविष्य उन्हीं का है जो समाज को पढ़ना, सांख्यिकीय संकेतों को समझना जानते हैं—और केवल आप ही वे संकेत उपलब्ध कराते हैं। जब सांख्यिकी और लोकतांत्रिक मूल्यों का समागम होता है, तब भारत की प्रगति का रहस्य प्रकट होता है।”
उन्होंने कहा, “यह सटीक आंकड़ा विश्लेषण शासन को प्रतिक्रिया आधारित कार्यशैली से निकालकर दूरदर्शी नेतृत्व में बदल देता है। हमेशा प्रतिक्रिया करना नीति की कमजोरी है, यह दूरदृष्टि की कमी को दर्शाता है।”
उन्होंने यह भी कहा, “हमें जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों को आंकड़ों के माध्यम से समझना होगा। ये प्रवृत्तियाँ केवल आंकड़े नहीं होतीं, बल्कि परिवर्तन की नब्ज होती हैं। इसलिए, सांख्यिकी के ज़रिए जनसांख्यिकीय विविधता को समझना नीतिगत दृष्टि से राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता की रक्षा और खतरे की पहचान के लिए अनिवार्य है।”
उपराष्ट्रपति ने सिविल सेवकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “भारत की प्रगति के इस विस्तृत फलक पर, सिविल सेवक मूक लेकिन दृढ़ शिल्पी के रूप में कार्य करते हैं। यह प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण और मिशन के कारण संभव हो पाया है। जब राजनीतिक नेतृत्व सकारात्मक हो, नीतियाँ स्पष्ट हों, तब प्रशासनिक तंत्र अपनी भूमिका को प्रभावी रूप से निभा सकता है। और इसी कारण भारत आज अभूतपूर्व आर्थिक उत्थान, अद्भुत बुनियादी ढांचे के विकास और आशाजनक भविष्य की ओर अग्रसर है। यह राजनीतिक दूरदृष्टि और प्रशासनिक निष्पादन का सुंदर मेल है। इसलिए मैं कहता हूँ कि भारत अपनी नौकरशाही पर गर्व करता है—यह विश्व की सबसे उत्कृष्ट है।”