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हमारी भाषाएं कभी भी विभाजन का कारण नहीं बन सकतीं, वे एकता की शक्ति हैं: उपराष्ट्रपति

Mochan Samachaar Desk by Mochan Samachaar Desk
29/05/2025
in देश
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हमारी भाषाएं कभी भी विभाजन का कारण नहीं बन सकतीं, वे एकता की शक्ति हैं: उपराष्ट्रपति
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नयी दिल्‍ली : भारत के उपराष्ट्रपति, जगदीप धनखड़ ने आज कहा, “सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है—आगामी दशक की जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने का। यह एक परिवर्तनकारी, गेम-चेंजर कदम होगा। यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा। यह आंखें खोलने वाला कदम होगा और लोगों की आकांक्षाओं को संतोष देगा। यह सरकार का एक व्यापक निर्णय है। पिछली जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। मैंने कई बार अपनी जाति को जानने के लिए उस जनगणना को देखा है, इसलिए मैं इस गणना के महत्व को समझता हूँ।”

नई दिल्ली में भारतीय सांख्यिकी सेवा के परिवीक्षाधीन अधिकारियों को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा, “जातिगत आंकड़े, यदि सोच-समझकर एकत्र किए जाएं, तो वे किसी भी प्रकार से विभाजनकारी नहीं हैं, बल्कि वे एकीकरण के उपकरण बन सकते हैं। कुछ लोग इस पर बहस कर रहे हैं, लेकिन हम परिपक्व समाज हैं। किसी जानकारी को इकट्ठा करना समस्या कैसे हो सकता है? यह तो अपने शरीर की एमआरआई कराने जैसा है—तभी तो आपको अपने बारे में जानकारी मिलती है। इस प्रक्रिया से हम संविधान में निहित समानता जैसे अमूर्त संकल्पों को मापनीय और जवाबदेह नीतिगत परिणामों में परिवर्तित कर सकते हैं।”

उपराष्ट्रपति ने शासन में अद्यतन और सटीक डेटा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “ठोस आंकड़ों के बिना प्रभावी नीति योजना बनाना अंधेरे में सर्जरी करने जैसा है। आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि आपका कार्य कितना प्रासंगिक है। हमारे राष्ट्रीय डेटा में हर अंक एक मानवीय कहानी का प्रतिनिधित्व करता है, और हर प्रवृत्ति एक दिशा दिखाती है।”

उन्होंने आगे कहा, “आपको अपने सेवा जीवन के हर क्षण में अनुभव होगा कि जो चीजें आपने मान ली थीं, वे कितनी नाजुक थीं। यह एक मृगतृष्णा जैसी होती है, क्योंकि आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते।”

धनखड़ ने दोहराया कि भारत का विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प केवल आकांक्षा नहीं, बल्कि साक्ष्य-आधारित योजना पर आधारित है। उन्होंने कहा, “हम एक ‘विकसित भारत’ की ओर बढ़ रहे हैं—यह हमारा सपना नहीं, बल्कि हमारा उद्देश्य, परिभाषित लक्ष्य है। भारत अब संभावनाओं वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि एक उभरती हुई शक्ति है, जिसकी प्रगति अब रुकने वाली नहीं है। यह प्रगति आंकड़ों के आधार पर साक्ष्य-आधारित मील के पत्थरों से चिन्हित है। हमें ऐसा राष्ट्र बनाना है जो अनुभवजन्य रूप से सोचता हो और ठोस प्रमाणों के आधार पर आगे बढ़े।”

नीति निर्धारण में ताजगीपूर्ण व प्रासंगिक आंकड़ों के उपयोग पर बल देते हुए उन्होंने कहा, “सांख्यिकी सिर्फ संख्याओं की बात नहीं है, यह उससे कहीं अधिक है। यह पैटर्न की पहचान और नीतिगत समझ की दिशा में जानकारी देने वाली अंतर्दृष्टियों का माध्यम है। यदि डेटा समकालीन परिप्रेक्ष्य में न हो, तो वह बासी हो सकता है। सही समय पर लिए गए निर्णय क्रांतिकारी प्रभाव डाल सकते हैं, न कि केवल मामूली।”

उपराष्ट्रपति ने कहा, “संख्याएं शुष्क अमूर्त नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सामूहिक आकांक्षाओं की गर्मजोशी से भरी गवाही हैं। भविष्य उन्हीं का है जो समाज को पढ़ना, सांख्यिकीय संकेतों को समझना जानते हैं—और केवल आप ही वे संकेत उपलब्ध कराते हैं। जब सांख्यिकी और लोकतांत्रिक मूल्यों का समागम होता है, तब भारत की प्रगति का रहस्य प्रकट होता है।”

उन्होंने कहा, “यह सटीक आंकड़ा विश्लेषण शासन को प्रतिक्रिया आधारित कार्यशैली से निकालकर दूरदर्शी नेतृत्व में बदल देता है। हमेशा प्रतिक्रिया करना नीति की कमजोरी है, यह दूरदृष्टि की कमी को दर्शाता है।”

उन्होंने यह भी कहा, “हमें जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों को आंकड़ों के माध्यम से समझना होगा। ये प्रवृत्तियाँ केवल आंकड़े नहीं होतीं, बल्कि परिवर्तन की नब्ज होती हैं। इसलिए, सांख्यिकी के ज़रिए जनसांख्यिकीय विविधता को समझना नीतिगत दृष्टि से राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता की रक्षा और खतरे की पहचान के लिए अनिवार्य है।”

युवाओं को समानता के वाहक के रूप में प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा, “आप परिवीक्षाधीन अधिकारी हैं। सांख्यिकीय मानचित्रण से असमानता के छिपे हुए आयाम उजागर होते हैं। लोकतंत्र तभी सार्थक होता है जब कमजोरों की सहायता बिना कहे की जाए। आपकी भूमिका यह सुनिश्चित करती है कि शासन लक्षित हस्तक्षेप कर सके।”

उपराष्ट्रपति ने सिविल सेवकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “भारत की प्रगति के इस विस्तृत फलक पर, सिविल सेवक मूक लेकिन दृढ़ शिल्पी के रूप में कार्य करते हैं। यह प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण और मिशन के कारण संभव हो पाया है। जब राजनीतिक नेतृत्व सकारात्मक हो, नीतियाँ स्पष्ट हों, तब प्रशासनिक तंत्र अपनी भूमिका को प्रभावी रूप से निभा सकता है। और इसी कारण भारत आज अभूतपूर्व आर्थिक उत्थान, अद्भुत बुनियादी ढांचे के विकास और आशाजनक भविष्य की ओर अग्रसर है। यह राजनीतिक दूरदृष्टि और प्रशासनिक निष्पादन का सुंदर मेल है। इसलिए मैं कहता हूँ कि भारत अपनी नौकरशाही पर गर्व करता है—यह विश्व की सबसे उत्कृष्ट है।”

अंत में, भाषाई विविधता पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “भाषा के मामले में भारत की स्थिति विशिष्ट है। तमिल, तेलुगु, कन्नड़, बंगला, संस्कृत, हिंदी, ओड़िया सहित अनेक भाषाएं हमारी शक्ति हैं। आठ भाषाएं तो शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। इन भाषाओं की साहित्यिक संपदा अमूल्य है। संविधान में भी यह प्रावधान है कि सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग धीरे-धीरे कम होगा और हिंदी का प्रयोग बढ़ेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृभाषा को प्राथमिकता देती है। तकनीकी शिक्षा—चिकित्सा और इंजीनियरिंग—अब स्थानीय भाषाओं में दी जा रही है। हमारी भाषाएं हमारी रीढ़ हैं। वे कभी विभाजन का कारण नहीं बन सकतीं। वे हमारी एकता का सूत्र हैं। मैं सभी से अपील करता हूँ कि इस सांस्कृतिक पक्ष को अपनाएं और सद्भावना से देखें।”

इस अवसर पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव डॉ. सौरभ गर्ग, महानिदेशक श्री पी.आर. मेशराम और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।

Tags: Our languages ​​can never be a cause of divisionthey are a unifying force: Vice President
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