नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज इस बात पर अपना दु:ख व्यक्त किया कि हमारे बच्चों को संविधान की वह प्रति (कॉपी) नहीं दिखाई जाती, जिस पर संविधान सभा के सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं। पीआईबी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार उन्होंने इसका उल्लेख किया कि इस मूल दस्तावेज में 22 लघु चित्र शामिल हैं, जिन्हें संविधान के हर एक भाग से पहले सोच-समझकर रखा गया है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “इन लघुचित्रों के माध्यम से संविधान निर्माताओं ने हमारी 5,000 साल पुरानी संस्कृति का सार व्यक्त किया है। लेकिन आप इन्हें देख नहीं पाए हैं, क्योंकि ये पुस्तकों का हिस्सा नहीं हैं।” उन्होंने आगे केंद्रीय विधि मंत्री से यह सुनिश्चित करने के लिए पहल करने का अनुरोध किया कि देश को उसके प्रामाणिक रूप में संविधान की कॉपी उपलब्ध करवाई जाए, जैसा कि हमारे संस्थापकों ने हमें दिया था।
उपराष्ट्रपति ने बतौर एक गणतंत्र भारत के 75वें वर्ष में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में ‘हमारा संविधान, हमारा सम्मान’ अभियान का उद्घाटन किया। उन्होंने मौलिक अधिकारों को हमारे लोकतंत्र की सर्वोत्कृष्टता और लोकतांत्रिक मूल्यों का एक अविभाज्य पहलू बताया। उपराष्ट्रपति ने यह रेखांकित करते हुए कि अगर किसी को मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं तो वह एक लोकतंत्र में रहने का दावा नहीं कर सकता। उन्होंने इस पर जोर दिया कि संविधान के इस भाग में हमारे पास श्री राम, सीता और लक्ष्मण के अयोध्या लौटते हुए चित्र हैं।
Hon’ble Vice-President, Shri Jagdeep Dhankhar inaugurated the ‘Hamara Samvidhan Hamara Samman’ Campaign, commemorating the 75th year of India as a Republic.
Shri Dhankhar also launched Nyaya Setu, a Tele-facilitation Service, that aims to expand the reach of legal services till… pic.twitter.com/ldQylpI9Ng
— Vice President of India (@VPIndia) January 24, 2024
उन्होंने अयोध्या में राम लला की प्राण- प्रतिष्ठा समारोह को एक ऐतिहासिक क्षण बताया। श्री धनखड़ ने कहा, “नियति के साथ साक्षात्कार और आधुनिकता (जीएसटी) के साथ साक्षात्कार के बाद हमने 22 जनवरी, 2024 को देवत्व के साथ साक्षात्कार किया।” उपराष्ट्रपति ने इसका उल्लेख किया कि राम मंदिर का निर्माण एक बहुत लंबी और दर्द देने वाली प्रक्रिया थी। उन्होंने कहा कि फिर भी यह कानून के अनुरूप प्राप्त किया गया और इससे यह पता चलता है कि देश कानून के शासन में विश्वास करता है।
एक गणतंत्र के रूप में भारत की यात्रा का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में हमारे संविधान ने हमें कठिन परिस्थितियों को पार करने और युगांतरकारी विकास दर्ज करने में सक्षम बनाया है। उपराष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा को भारत की संवैधानिक यात्रा का सबसे काला और शर्मनाक दौर बताया। उन्होंने रेखांकित किया कि इसने लाखों लोगों को जेल में डालकर उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमें आशा थी कि न्यायपालिका इस अवसर पर आगे आएगी, लेकिन दुर्भाग्य से न्यायपालिका के लिए भी यह सबसे अंधकारमय अवधि में से एक है। नौ उच्च न्यायालयों ने यह रुख अपनाया कि आपातकाल के दौरान भी मौलिक अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। लेकिन एडीएम जबलपुर मामले में उच्चतम न्यायालय ने उन नौ उच्च न्यायालयों के इस रूख को खारिज कर दिया।”
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि जब लोग अपने संवैधानिक कर्तव्यों के अनुपालन में विफल हो जाते हैं तो किसी को खेद की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने रेखांकित किया कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के पास कोई बहाना नहीं है और उन्हें संविधान द्वारा उन पर किए गए विश्वास को प्रमाणित करना होगा।
उन्होंने मौलिक कर्तव्यों को संविधान का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया। उपराष्ट्रपति ने सभी से मौलिक कर्तव्यों का अनुपालन करने का अनुरोध करते हुए कहा कि इसमें कोई खर्च नहीं होता है और यह हमें अच्छा नागरिक बनाता है।
इसके अलावा उन्होंने राष्ट्र के सभी अंगों से अपने-अपने क्षेत्र में काम करने का अनुरोध किया। श्री धनखड़ ने कहा कि एक गतिशील विश्व में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मतभेद होना स्वाभाविक है। उन्होंने इन मतभेदों के बावजूद सहयोगात्मक दृष्टिकोण और सुव्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से इन्हें सुलझाने का आह्वाहन किया और इन्हें सार्वजनिक मंचों पर नहीं उठाने को लेकर सावधान किया।
उन्होंने विधायिकाओं में व्यवधान और अशांति की जगह बहस और संवाद का आह्वाहन किया। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि जब संसद में औपनिवेशिक दंड-विधान न्याय-विधान को संशोधित करने वाले एक महान विधेयक पर चर्चा हो रही थी तो राज्यसभा में कोई भी कानूनी विद्वान इस ऐतिहासिक अवसर के दौरान अपना योगदान देने के लिए आगे नहीं आया।
उपराष्ट्रपति ने भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. बीआर आंबेडकर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि वे हम सभी के लिए बहुत मायने रखते हैं और उनका भारत के वास्तुकार के पद तक पहुंचना आसान नहीं था। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर को काफी पहले ही भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए था। श्री धनखड़ ने इस तथ्य पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की कि वे उस सरकार और संसद का हिस्सा थे, जिसने 1990 में भारत के महानतम पुत्रों में से एक डॉ. आंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित करके उनके साथ न्याय किया। उन्होंने आगे कहा, “उसी निरंतरता में और उसी कारण से बिहार के एक और महान सपूत श्री कर्पूरी ठाकुर जी को न्याय मिला है।”
उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि अमृत काल में हमारे युवाओं को कई गुमनाम नायकों के बलिदानों से अवगत कराया जा रहा है। श्री धनखड़ ने कहा कि हमने भावनात्मक और राष्ट्रीय स्तर पर अपने भारत को फिर से खोजा है।
श्री धनखड़ ने ‘हमारा संविधान हमारा सम्मान’ अभियान का उद्घाटन करने के बाद एक टेली-सुविधा सेवा- न्याय सेतु को भी लॉन्च किया। इसका उद्देश्य सुदूर क्षेत्रों तक कानूनी सेवाओं की पहुंच का विस्तार करना है।
इस कार्यक्रम में केंद्रीय विधि और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री अर्जुन राम मेघवाल, भारत के अटॉर्नी जनरल श्री आर. वेंकटरमणि, न्याय विभाग के सचिव श्री एसकेजी रहाटे और इग्नू के कुलपति प्रोफेसर नागेश्वर राव सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।