नई दिल्ली : प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Shri Narendra Modi) ने आज प्रगति मैदान के भारत मंडपम में श्रील प्रभुपाद जी की 150वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने आचार्य श्रील प्रभुपाद की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनके सम्मान में एक स्मारक टिकट तथा एक सिक्का जारी किया। पीआईबी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार (According to the press release issued by PIB) गौड़ीय मिशन के संस्थापक, आचार्य श्रील प्रभुपाद ने वैष्णव आस्था के मूलभूत सिद्धांतों के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इतने सारे महान संतों की उपस्थिति से भारत मंडपम की भव्यता कई गुना बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि इस भवन की अवधारणा भगवान बसवेश्वर के ‘अनुभव मंडप’ पर आधारित है। उन्होंने कहा कि यह प्राचीन भारत में आध्यात्मिक संवाद का केंद्र था। प्रधानमंत्री ने कहा, “‘अनुभव मंडप’ सामाजिक कल्याण के विश्वास और संकल्प की ऊर्जा का केंद्र था।” उन्होंने कहा, “श्रील प्रभुपाद जी की 150वीं जयंती पर आज भारत मंडपम के अंदर भी ऐसी ही ऊर्जा देखी जा सकती है।” भारत मंडपम को भारत की आधुनिक क्षमताओं और प्राचीन उद्गम का केंद्र बनाने पर सरकार के फोकस को दोहराते हुए, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यहां हाल ही में संपन्न जी-20 शिखर सम्मेलन को याद किया जिसमें नए भारत की संभावनाओं की झलक नजर आई थी। प्रधानमंत्री ने कहा, “आज, यह स्थल विश्व वैष्णव सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है।” श्री मोदी ने कहा कि यह नये भारत की तस्वीर प्रस्तुत करता है, जो विकास और विरासत का एक मिश्रण है जहां आधुनिकता का स्वागत किया जाता है और पहचान गर्व का विषय है। प्रधानमंत्री ने इस भव्य अवसर का हिस्सा बनने के लिए आभार व्यक्त किया और भगवान कृष्ण को नमन किया। उन्होंने श्रील प्रभुपाद जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके सम्मान में जारी डाक टिकट और स्मारक सिक्के के लिए सभी को बधाई दी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अयोध्या धाम में श्री राम मंदिर के अभिषेक के मद्देनजर श्रील प्रभुपाद जी की 150वीं जयंती मनाई जा रही है। लोगों के चेहरे पर प्रसन्नता देखकर प्रधानमंत्री ने इस विशाल यज्ञ के पूरा होने का श्रेय संतों के आशीर्वाद को दिया।
प्रधानमंत्री ने भक्ति के आनंद का अनुभव करने की स्थितियां बनाने के लिए चैतन्य महाप्रभु के योगदान को याद किया। प्रधानमंत्री ने कहा, “चैतन्य महाप्रभु कृष्ण प्रेम के प्रतिमान थे; उन्होंने अध्यात्म और साधना को जन-साधरण के लिए सुलभ बना दिया।” उन्होंने कहा कि चैतन्य महाप्रभु ने आनंद के माध्यम से भगवान तक पहुंचने का रास्ता दिखाया। प्रधानमंत्री ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को याद किया जब जीवन के एक पड़ाव पर उन्हें महसूस हुआ कि भक्ति में पूरी तरह से जीने के बावजूद एक खालीपन था, एक दूरी थी। उन्होंने कहा कि यह भजन कीर्तन का आनंद ही था, जिसमें पूरी तल्लीनता थी। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा, ”मैंने व्यक्तिगत रूप से चैतन्य महाप्रभु की परंपरा की शक्ति को महसूस किया है।” उन्होंने कहा, ‘ आज भी जब कीर्तन चल रहा था तो मैं एक भक्त के तौर पर ताली बजा रहा था, प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं।’ प्रधानमंत्री ने कहा, “चैतन्य महाप्रभु ने कृष्ण लीला की गीतात्मकता के साथ-साथ जीवन को समझने के लिए उसका महत्व भी बताया।”
प्रधानमंत्री ने यह रेखांकित करते हुए कहा कि चैतन्य महाप्रभु जैसी विभूतियां समय के अनुसार किसी न किसी रूप में अपने कार्यों को आगे बढ़ाती रहती हैं। श्रील भक्तिसिद्धांत प्रभुपाद, उन्हीं के संकल्पों की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने कहा कि श्रील प्रभुपाद जी के जीवन ने हमें सिखाया कि ध्यान के साथ कुछ भी कैसे प्राप्त किया जाए। उन्होंने सभी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। प्रधानमंत्री ने बताया कि श्रील प्रभुपाद जी जब 10 वर्ष से कम आयु के थे, तब उन्होंने गीता को कंठस्थ कर लिया था और साथ ही उन्होंने संस्कृत, व्याकरण और वेदों का भी ज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने कहा कि श्रील प्रभुपाद जी ने खगोलीय गणित में सूर्य सिद्धांत ग्रंथ का वर्णन किया और सिद्धांत सरस्वती की डिग्री हासिल की। उन्होंने 24 साल की उम्र में एक संस्कृत विद्यालय भी खोला। उन्होंने बताया कि श्रील प्रभुपाद जी ने 100 से अधिक किताबें और लेख लिखे हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि श्रील प्रभुपाद जी ने जीवन के साथ ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग (ज्ञान और समर्पण का मार्ग) के बीच संतुलन बनाया। उन्होंने कहा कि श्रील प्रभुपाद स्वामी ने अहिंसा और प्रेम के मानवीय संकल्प के वैष्णव भाव का प्रचार करने के लिए काम किया, जिसका आह्वान गांधीजी करते थे।
प्रधानमंत्री ने वैष्णव भाव से गुजरात के संबंध को रेखांकित किया। उन्होंने गुजरात में भगवान कृष्ण की लीलाओं और गुजरात में मीरा बाई के ईश्वर में लीन होने का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसने कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु की परंपरा को मेरे जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बना दिया है।
प्रधानमंत्री ने भारत की आध्यात्मिक चेतना का स्मरण किया और कहा कि उन्होंने 2016 में गौड़ीय मिशन के शताब्दी वर्ष में अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने उद्गम के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि किसी की उद्गम से दूरी की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति उसकी क्षमताओं और शक्तियों को भूलना है। उन्होंने कहा कि भक्ति की गौरवशाली परंपरा के साथ भी ऐसा ही हुआ है। उन्होंने कहा कि कई लोग भक्ति, तार्किकता और आधुनिकता को विरोधाभासी मानते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा, “भक्ति हमारे ऋषियों द्वारा दिया गया एक भव्य दर्शन है। यह हताशा नहीं, बल्कि आशा और आत्मविश्वास है। भक्ति भय नहीं, उत्साह है।” उन्होंने कहा कि भक्ति पराजय नहीं बल्कि प्रभाव का संकल्प है। उन्होंने कहा कि भक्ति में स्वयं पर विजय पाना और मानवता के लिए काम करना शामिल है। उन्होंने कहा कि इसी भावना के कारण भारत ने अपनी सीमाओं के विस्तार के लिए कभी दूसरों पर आक्रमण नहीं किया। उन्होंने लोगों को भक्ति की महिमा से पुनः परिचित कराने के लिए संतों को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने कहा, “आज आजादी के अमृत काल में देश ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ का संकल्प लेकर संतों के संकल्प को आगे बढ़ा रहा है।”
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में आध्यात्मिकता के नेतृत्व करने वालों के महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और इसके राष्ट्रीय लोकाचार को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। हमारे भक्ति मार्गी संतों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में बल्कि हर चुनौतीपूर्ण चरण में राष्ट्र का मार्गदर्शन करने में भी अमूल्य भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा, “भारत के उतार-चढ़ाव भरे इतिहास में, प्रख्यात संत और आध्यात्मिक पुरोधा विभिन्न क्षमताओं में राष्ट्र को दिशा प्रदान करने के लिए उभरे हैं।” उन्होंने कठिन मध्ययुगीन काल में संतों की भूमिका को भी रेखांकित किया।
पृष्ठभूमि
गौड़ीय मिशन के संस्थापक, आचार्य श्रील प्रभुपाद ने वैष्णव आस्था के मूलभूत सिद्धांतों के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गौड़ीय मिशन ने श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं और वैष्णव धर्म की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत को दुनिया भर में प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे यह हरे कृष्ण आंदोलन का केंद्र बन गया है।