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‘भारत की हरित परिवर्तन योजना के वित्तपोषण और अनुकूलन आवश्यकताओं’ पर दो दिवसीय कार्यशाला कोलकाता में हुई शुरू

आर्थिक सलाहकार, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए पूंजी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विकासशील देशों के अपने जलवायु वित्त वर्गीकरण पर जोर दिया

Mochan Samachaar Desk by Mochan Samachaar Desk
16/01/2025
in व्‍यापार
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‘भारत की हरित परिवर्तन योजना के वित्तपोषण और अनुकूलन आवश्यकताओं’ पर दो दिवसीय कार्यशाला कोलकाता में हुई शुरू
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कोलकाता : केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change) द्वारा आयोजित “भारत की हरित परिवर्तन योजना के वित्तपोषण और अनुकूलन आवश्यकताओं” (Financing and adaptation needs of India’s green transition plan) पर दो दिवसीय हितधारक परामर्श कार्यशाला आज कोलकाता में शुरू हुई। यह कार्यशाला शहर में चल रहे हरित जलवायु निधि तत्परता कार्यक्रम के तहत शुरू हुई।

कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सचिव डॉ. मनोज पंत, सीडीआरआई के महानिदेशक श्री अमित प्रोथी, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की आर्थिक सलाहकार सुश्री राजश्री रे, बंधन समूह के अध्यक्ष श्री चंद्रशेखर घोष, यूएनडीपी की उप-निवासी प्रतिनिधि सुश्री इसाबेल त्सचन हराडा, ग्रीन क्लाइमेट फंड के क्षेत्रीय प्रबंधक श्री सत्य शिव सास्वत और भारतीय चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष एवं आदित्य बिड़ला समूह के मुख्य स्थायित्व अधिकारी डॉ. नरेश त्यागी और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के निदेशक श्री अभिषेक आचार्य ने भाग लिया।

सुश्री रे ने अपने संबोधन में कहा कि कम कार्बन और जलवायु अनुकूल विकास हासिल करने के लिए भारत को सभी हितधारकों, नीति निर्माताओं, नियामकों और वित्तीय प्रणाली के सम्मिलित प्रयासों, एक सुसंगत दृष्टिकोण और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने ज़ोर दिया कि वर्गीकरण, हरित दिशा-निर्देशों और वित्तीय उत्पादों के साथ-साथ निजी और सार्वजनिक क्षेत्र और बैंकरों और परिसंपत्ति प्रबंधकों की भूमिकाओं को परिभाषित करने के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण होना चाहिए। उन्होंने बताया कि वर्ष 2024-25 के लिए प्रस्तुत बजट में जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए पूंजी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए भारत की अपनी जलवायु वित्त वर्गीकरण विकसित करने का आह्वान किया गया है। इससे भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं और हरित संक्रमण को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। जलवायु वित्त वर्गीकरण एक ऐसी प्रणाली है जो वर्गीकृत करती है कि अर्थव्यवस्था के किन हिस्सों को संधारणीय निवेश के रूप में विपणन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह निवेशकों और बैंकों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए खरबों डॉलर को प्रभावशाली निवेश की ओर निर्देशित करने में मदद करता है। सुश्री रे ने कहा कि भारतीय वर्गीकरण के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य और स्पष्ट अवसर अनुकूलन और लचीलेपन के उपायों को वर्गीकृत और पहचानना होगा, जो इस क्षेत्र और उससे परे अन्य देशों के लिए कार्रवाई की रूपरेखा के रूप में काम कर सकता है, जिसका उद्देश्य वित्त के सार्वजनिक और निजी दोनों स्रोतों को खोलना है।

सुश्री रे ने ग्रीन बैंक पर भी ध्यान केंद्रित किया। ग्रीन बैंक एक सार्वजनिक या अर्ध-सार्वजनिक वित्तीय संस्थान है जो स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की तैनाती में तेजी लाने के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में अभिनव वित्तपोषण तकनीकों और बाजार विकास उपकरणों का उपयोग करता है। इस संदर्भ में उन्होंने भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरईडीए) के बारे में बात की जो स्वच्छ ऊर्जा निवेश को बढ़ावा देती है।

डॉ. पंत ने कहा कि आज के दौर में जलवायु परिवर्तन से निपटना सिर्फ़ पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह विकास के लिए अनिवार्य भी है, जिसके लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोणों में निवेश बढ़ाने, जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने और बुनियादी ढाँचे की लचीलापन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी के महत्व और सहयोग करने और विकेंद्रीकृत, संदर्भ-विशिष्ट वित्तपोषण मॉडल बनाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।

यह कार्यशाला भारत की जलवायु वित्तपोषण आवश्यकताओं को समझने तथा भारत में जलवायु अनुकूल विकास में निवेश में तेजी लाने के लिए आवश्यक लामबंदी के पैमाने पर हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए चल रहे प्रयास का हिस्सा है। कार्यशाला में जलवायु अनुकूलन में निवेश बढ़ाने की आसन्न आवश्यकता पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।

कार्यशाला में भारत की जलवायु संबंधी कार्रवाइयों को समझने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें भारत की हरित परिवर्तन योजना के वित्तपोषण, परिवर्तन के वित्तपोषण में निजी क्षेत्र की भूमिका और अनुकूलन आवश्यकताओं के लिए वित्तपोषण आवश्यकताओं और अंतराल पर तीन तकनीकी सत्रों में विभिन्न वित्तीय साधनों पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसमें भारत के मौजूदा जलवायु पारिस्थितिकी तंत्र में सरकार, उद्यम पूंजीपतियों, निगमों और उद्योग जगत के नेताओं की भूमिका पर चर्चा की गई। चर्चाओं में जलवायु-तकनीक पारिस्थितिकी तंत्र में वित्तपोषण को बढ़ावा देने की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें विघटनकारी क्षमता वाले उभरते समाधानों पर जोर दिया गया।

ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) सचिवालय ने भी जीसीएफ के तहत उपलब्ध सुविधाओं पर अपनी जानकारी दी। इस परामर्श कार्यशाला का उद्देश्य निजी क्षेत्र और वित्तीय संस्थानों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ चल रहे जुड़ाव को मजबूत करना था ताकि आने वाले भविष्य में प्रभावी और सुसंगत भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।

Tags: Financing and adaptation needs of India's green transition planForest and Climate ChangeUnion Ministry of Environment
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